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मैं कहीं का न रहूं तो अच्छा है मेरे ठिकानों पर को

मैं कहीं का न रहूं तो अच्छा है 
मेरे ठिकानों पर कोई आस नज़र नहीं आती।
पहले तो नाले नाले आती थी हसीं 
अब तो गाहे-बगाहे भी नहीं आती।
मैं कहीं का न रहूं तो अच्छा है 
मेरे ठिकानों पर कोई आस नज़र नहीं आती।
पहले तो नाले नाले आती थी हसीं 
अब तो गाहे-बगाहे भी नहीं आती।