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Ye kya raaz chupa tha uss kone ka, kya hakikat tha uss khamoshi ka, ye kesi kasar thi jiska ummid ki koi asar nahi thi , jaha se na koi khuda yaad atta hai , na koi .
उस बड़े से दीवाल के कोने के साथ चिपक कर बेठी थी , बस एक रंग का था सब कुछ , वह की हवाए रौशनी उसके ज़स्बत , उसके ख्याल उसका रंग और वह की कहानी सब कुछ काला था , उस दिवार क्व कोने में बस ठहर ठहर कर सासों की आवाज़ , और नाखुनो से खरोचने की आवाज़े , कुछ दिख रहा था तो वो था अँधेरा , सिर्फ अँधेरा,
वो खुद अपने उंगलियों से अपने आप को छूती और छूते ही झट अपने हाथ हटा लेती, खुदकी जिस्म से नफरत नहीं था , तो क्यों एसा करती थी ?