krishna vani श्रृंगार रस की कविता सी, वो मीठी मीठी उसकी बातें। सयोंग वियोग का भेद नही, कुछ यूँ गुजरी है हमारी राते। प्रेमी सजाएँ फूलो से सजनी, जुल्फों पे लगाए गुल हजार। शौहर सजाएँ गहनों से सजनी , हाथों में पहनाए कँगन अपार। कृष्ण कहे बाँसुरी से गोपियों, बाँसुरी लगे राधे-राधे पुकार। गौरव सजाएँ ख्वाबो से सोनियो, कलम से उसका हुस्न उतार। #God #kove