3. एक बलात्कार पीड़िता क्या कहती है अपनी परछाईं से- दर्द के सबसे भयावह पलों का सामना कर रही थी चले थे हाथ बदन में, कुचले थे ख्वाब जेहन में अश्रु थे चेहरों में,पर कराहते आवाज़ थे नज़रों में न्याय की गुहार के लिये थी जब मैं खड़ी कहाँ थी तुम आखिर, मेरे तन का कवच बनकर क्यों नहीं थी खड़ी? पहुँची जब मैं फूल बनकर अख़बारों के पन्नों में, ढूंढ़ी तुम्हें मैं हर कली.. सहस ही कह पड़ी- दर्द को मात देकर लिये पुनर्जन्म,नये किस्सों में मैं लिखी.. तुम चलो साथ मेरे या छोड़ दो मेरे हिस्से में तन्हाई, अब तुम्हारी नहीं है जरूरत मुझे,मेरी परछाईं.. हर लड़की अपनी ज़िंदगी में किसी एक परछाईं के साथ जीना सीख चुकी होती है, चाहे वो कोई अपना करीबी हो या कोई और भी, लेकिन वे भूल चुकी होतीं हैं कि उनकी ढाल वो ख़ुद ही है। बेहतर होगा कि किसी परछाईं का इंतज़ार ना कर वे अपनी ताकत भी खुद बन सके। पूरी श्रृंखला पढ़ने के लिये tap करें #तन्हाईऔरपरछाईं 3 years old poem.