वो एक पागल सी दिवानी मेरी, अब पता नही कैसी होगी. . . हल्के हल्के मुस्कुराया करती, कभी खुश होकर भी रुठ जाया करती, वो तकिये को लेकर बाहो मे, फिर गले से उसे लगाया करती, अब पता नही किससे वो लडती होगी, वो एक पागल सी दिवानी मेरी अब पता नही कैसी होगी ।