एक दीवाना था। (पार्ट 7) तनूजा तो दुकान से चली गई पर अक्षत को सोच में डाल गई। नेहा से रिश्ता तय हो गया था। घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। और अब पता चला कि तनूजा की शादी टूट चुकी थी। एक बार ख्याल तो आ गया कि वह नेहा से शादी करने से मना कर दें। पर फिर माँ-पापा का ख्याल आया। उन्हें वजह भी तो बतानी होगी। सोचा कि तनूजा के बारे में बता दें। पर अगर उन्होंने मना कर दिया यह कह कर कि वह तलाकशुदा है तो!? फिर ख्याल आया कि यह सब तो बाद की बातें है। पहले तो उसे तनूजा को अपने दिल कि बात बतानी होगी। क्या पता तनूजा क्या जवाब देगी! अगर उसने मना कर दिया तो? और अगर उसने हाँ कह भी दिया तो क्या माँ-पापा मान जायेंगे?! सवाल तो बहुत सारे थे पर जवाब किसी का नहीं था। अक्षत कश्मकश में था कि उसका फ़ोन बज उठा। देखा तो नेहा का फ़ोन था। “अक्षत, आप कैसे हैं?” “में ठीक हूँ और तुम?” अक्षत ने कह तो दिया पर उसके दिल की हालत सिर्फ वही जानता था। “कहो क्यों फ़ोन किया?” “लो! अब अपने होनेवाले पति को फ़ोन करने के लिये भी वजह होना ज़रूरी है?” “बस मन करा तो फ़ोन कर लिया।“ नेहा ने हँसते हुये कहा। अक्षत ने जैसे-तैसे उसे टाल दिया कह कर की दुकान में काम बहुत है और वह उसे बाद में फ़ोन करेगा।