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अवसाद बढ़ रहा है रात के सन्नाटे में चीखते झिंगुर,

अवसाद बढ़ रहा है

रात के सन्नाटे में चीखते झिंगुर,
और पंखे की घर्रघर्र-घर्रघर्र,
न जाने क्यूँ मन बहुत व्याकुल है?
तबियत भी ठीक है
और मौसम भी हरा है,
पर मूड न जाने क्यूँ उखड़ा-उखड़ा है?
किसी की याद भी नहीं है,
किसी की तलब भी नहीं है.
पर न जाने क्यूँ अवसाद बढ़ रहा है?
नींद नहीं आती है, करवट कितना बदलूँ?
कोई अनहोनी न हो जाये कहीं,
मन मेरा डर रहा है। #realfeelings
अवसाद बढ़ रहा है

रात के सन्नाटे में चीखते झिंगुर,
और पंखे की घर्रघर्र-घर्रघर्र,
न जाने क्यूँ मन बहुत व्याकुल है?
तबियत भी ठीक है
और मौसम भी हरा है,
पर मूड न जाने क्यूँ उखड़ा-उखड़ा है?
किसी की याद भी नहीं है,
किसी की तलब भी नहीं है.
पर न जाने क्यूँ अवसाद बढ़ रहा है?
नींद नहीं आती है, करवट कितना बदलूँ?
कोई अनहोनी न हो जाये कहीं,
मन मेरा डर रहा है। #realfeelings