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जलमग्न लंका में वो चिता की आखिरी काष्ठ जैसी, लिए

जलमग्न लंका में वो चिता की आखिरी काष्ठ जैसी,

लिए गुब्बारे रंगीन वह हाथ उठाती ,चीत्कार करती।

काशी अपनी धरती पर इक और कबीर दिखलाती,

        पथभ्रष्ट जनों को यथार्थ मार्ग का फिर एक बार परिचय करवाती।

 हे मानव! तू कर विचार और अब बता कि कौन थी वह? ..5..

(*कौन थी वह* कविता से) कौन थी वह
जलमग्न लंका में वो चिता की आखिरी काष्ठ जैसी,

लिए गुब्बारे रंगीन वह हाथ उठाती ,चीत्कार करती।

काशी अपनी धरती पर इक और कबीर दिखलाती,

        पथभ्रष्ट जनों को यथार्थ मार्ग का फिर एक बार परिचय करवाती।

 हे मानव! तू कर विचार और अब बता कि कौन थी वह? ..5..

(*कौन थी वह* कविता से) कौन थी वह