क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं