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कुँअर बेचैन की कलम से प्रस्तुत है- अब आग के लिबास

 कुँअर बेचैन की कलम से प्रस्तुत है- 
अब आग के लिबास को ज़्यादा न दाबिए,
सुलगी हुई कपास को ज़्यादा न दाबिए ।
ऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें, 
चटके हुए गिलास को ज़्यादा न दाबिए ।
चुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में,
पैरों तले की घास को ज़्यादा न दाबिए ।
मुमकिन है ख़ून आपके दामन पे जा लगे,
 कुँअर बेचैन की कलम से प्रस्तुत है- 
अब आग के लिबास को ज़्यादा न दाबिए,
सुलगी हुई कपास को ज़्यादा न दाबिए ।
ऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें, 
चटके हुए गिलास को ज़्यादा न दाबिए ।
चुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में,
पैरों तले की घास को ज़्यादा न दाबिए ।
मुमकिन है ख़ून आपके दामन पे जा लगे,