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उल्लास जी की कविताएं उसके होठों का ध्वनित उल्लास

उल्लास जी की कविताएं 
उसके होठों का ध्वनित उल्लास 
श्रृंगारहीन है !
क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ?
जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्में
निर्विराम प्रश्नों की परिरेखाएँ उभर आती हैं
सतह पर!
उल्लास जी की कविताएं 
उसके होठों का ध्वनित उल्लास 
श्रृंगारहीन है !
क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ?
जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्में
निर्विराम प्रश्नों की परिरेखाएँ उभर आती हैं
सतह पर!