उल्लास जी की कविताएं उसके होठों का ध्वनित उल्लास श्रृंगारहीन है ! क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ? जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्में निर्विराम प्रश्नों की परिरेखाएँ उभर आती हैं सतह पर!