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देखा है मैंने, बिन कुछ लिए कुदरत को देते हुए! देख

देखा है मैंने, बिन कुछ लिए कुदरत को देते हुए! 
देखा है काटों के बीच फूलों को हँसते हुए! 
देखा है जलते सूरज को संसार रौशन करते हुए! 
देखा है मैंने ओस की बूँदों पर पूरी पृथ्वी सजे हुए!   काव्य-ॲंजुरी✍️ की साप्ताहिक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है।

विषय : देखा है हमने
पंक्ति सीमा : 4
समय सीमा:25.02.2021
                9:00pm
विशेष : विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है।
देखा है मैंने, बिन कुछ लिए कुदरत को देते हुए! 
देखा है काटों के बीच फूलों को हँसते हुए! 
देखा है जलते सूरज को संसार रौशन करते हुए! 
देखा है मैंने ओस की बूँदों पर पूरी पृथ्वी सजे हुए!   काव्य-ॲंजुरी✍️ की साप्ताहिक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है।

विषय : देखा है हमने
पंक्ति सीमा : 4
समय सीमा:25.02.2021
                9:00pm
विशेष : विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है।
nehapathak7952

Neha Pathak

New Creator