जब भी बंज़र खलिहानों में मेहनत रोया करती है, बदनसीब सी बोझिल आंखे आँसू बोया करती हैं... प्रथम वीर इस धरा-जगत के 'कृषकों' का सम्मान करो, भार देश की उन्नति का जिनकी पलकें ढ़ोया करती हैं... जिनके कर्मकृतों से रोशन दुनिया का बाज़ार है, ऐसे कर्मपुरुष की किश्मत अंधियारों में सोया करती है... दुर्लभ दिखती रोटी को दिनभर मजदूरी करता है, कुचलित जीवन में बच्चों की मांगे खोया करती हैं... अवकाश प्राप्त अफ़सर के ख़ाते पटे पड़े हैं हीरों से, निसदिन पिसते मजदूरों की बेटी पेंसिल को रोया करती है... आशाओं से छलके आंसू तब तर्कों में बंट जाते हैं, मेहनत पर होती राजनीति जब दंस चुभोया करती है... चुका नहीं सकता मैं बेशक़ कृषकों का उपकार'डिअर', मेरे तप की निर्गुण माला उनका हर दर्द पिरोया करती है... #yqdidi #yqbaba #yqfamily #yqkishan #yqhindi