अफ़साना लिखने की नीयत नहीं है । ये मत समझना के काबलियत नहीं है ।। खुद को घोल के इतना पी चुका हूँ मैं लहू की मेरे अंदर कोई फ़क़त नहीं है ।। अटकी है ज़िन्दगी बस इत्ती सी बात पे, के मंटो या गुलज़ार जैसी मेरी हरकत नहीं है ।। मुझे दोस्त भी मिले दोस्ती भी राम पर किसी में अपने जैसी सोहबत नहीं है । पीनी शुरू तो करनी है पर कैसै करूँ । मेरे यारों को आज कल फुरसत नहीं है ।। नज़ाक़त ही लहज़ा है शुरू से मेरा किसी बात की मुझमें ख़िलाफ़त नहीं है । बोला था एक बार इक दुश्मन ने मुझसे । सतिन्दर तेरे जैसी कोई शख्सियत नहीं है । । ©️✍️ सतिन्दर अफ़साना लिखने की नीयत नहीं है । ये मत समझना के काबलियत नहीं है ।। खुद को घोल के इतना पी चुका हूँ मैं लहू की मेरे अंदर कोई फ़क़त नहीं है ।। अटकी है ज़िन्दगी बस इत्ती सी बात पे, के मंटो या गुलज़ार जैसी मेरी हरकत नहीं है ।।