किसी शायर की मोहब्बत हो जाऊँ लफ्ज़-ब-लफ्ज़ वो मुझे निखार दे ज़िदा रहूँ उम्र के बाद भी ऐसे इतिहास में मुझे उतार दे पिछले पन्ने पर जैसे छप जाता ऐसे वो मुझे खुद पर उभार दे अपनी लिखावट में जो है घोलता एहसास ऐसे मुझे वो हज़ार दे शब्दों को जैसे वो रहता सजाता ऐसे ज़ुल्फें वो मेरी संवार दे बहकने लगूँ इश्क में जब मैं अपनी गज़लों से वो मुझे बाँध दे मैं गुनगुनाती सी उसकी सुबह हो जाऊँ वो प्यारी सी मुझे एक सांझ दे जैसे अपनी अधूरी लेख को देखता ऐसे एक-आध बार मुझे निहार दे मैं अपनी उसे ज़रूरत बना लूँ वो जिंदगी मान मुझे गुज़ार दे किसी शायर की मोहब्बत हो जाऊँ लफ्ज़-ब-लफ्ज़ वो मुझे निखार दे किसी शायर की मोहब्बत हो जाऊँ लफ्ज़-ब-लफ्ज़ वो मुझे निखार दे ज़िदा रहूँ उम्र के बाद भी ऐसे इतिहास में मुझे उतार दे पिछले पन्ने पर जैसे छप जाता ऐसे वो मुझे खुद पर उभार दे अपनी लिखावट में जो है घोलता एहसास ऐसे मुझे वो हज़ार दे