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पल में बिगड़ती पल में संवरती यहां तकदीरे हैं कित

पल में बिगड़ती पल में  संवरती यहां तकदीरे हैं  कितना  कमालो रुपया पैसा छोड़कर सब चले जाना है यहां कब रहनी  किसकी जागीरें हैं आजाद देश में अब तलक गुलामी की जंजीरें हैं दिमाग मिलते हैं यहां सियासती खेलों में, दिल मिले भला कैसे? यहां मजहबी लकीरे हैं पल में बिगड़ती पल सावंरती यहां तकदीरे हैं!

©Dinesh Kashyap
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