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इश्क़ की दास्ताँ अधूरी न रह जाए। चाहत की हम वो इबार

इश्क़ की दास्ताँ अधूरी न रह जाए।
चाहत की हम वो इबारत लिखेंगे।

मुक़म्मल हो जाए गर दास्ताँ हमारी,
महबूब के क़दमों में मुबारक लिखेंगे।

मिले जो गर हमें ख़ुशियों का जहाँ,
मोहब्बत की ऊँची इमारत लिखेंगे।

होती है कैसी ये सच्ची मोहब्बत,
आशिक़ों के लिए वो इनायत लिखेंगे।

वफ़ा की राहों से गुजरेंगे जब भी,
लफ़्ज़ों में थोड़ी शरारत लिखेंगे।

छेड़कर महबूब के हुस्न-ए-बहार,
साहिल के नाम शराफ़त लिखेंगे। ♥️ Challenge-598 #collabwithकोराकाग़ज़ 

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। 

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
इश्क़ की दास्ताँ अधूरी न रह जाए।
चाहत की हम वो इबारत लिखेंगे।

मुक़म्मल हो जाए गर दास्ताँ हमारी,
महबूब के क़दमों में मुबारक लिखेंगे।

मिले जो गर हमें ख़ुशियों का जहाँ,
मोहब्बत की ऊँची इमारत लिखेंगे।

होती है कैसी ये सच्ची मोहब्बत,
आशिक़ों के लिए वो इनायत लिखेंगे।

वफ़ा की राहों से गुजरेंगे जब भी,
लफ़्ज़ों में थोड़ी शरारत लिखेंगे।

छेड़कर महबूब के हुस्न-ए-बहार,
साहिल के नाम शराफ़त लिखेंगे। ♥️ Challenge-598 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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