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ख़्वाबों के आंगन में, देख रही हो ख़्वाब सुनहरा,

ख़्वाबों के  आंगन में, देख रही हो  ख़्वाब सुनहरा,
खूबसूरती से  परिपूर्ण, मासूम सा  तुम्हारा  चेहरा।
चेहरे से दमकता  हुआ नूर, जन्नत की हो कोई हूर,
शरारती आँखों पर लगा है, क्यूँ पलकों का पहरा। इस विषय पर मुक्तक शैली में रचना करें|

सबसे अच्छी रचना को अगले दिन उदाहरण के तौर पर पेश किया जायेगा|

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ख़्वाबों के  आंगन में, देख रही हो  ख़्वाब सुनहरा,
खूबसूरती से  परिपूर्ण, मासूम सा  तुम्हारा  चेहरा।
चेहरे से दमकता  हुआ नूर, जन्नत की हो कोई हूर,
शरारती आँखों पर लगा है, क्यूँ पलकों का पहरा। इस विषय पर मुक्तक शैली में रचना करें|

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