दे इजाज़त जो तू। (पार्ट 1) 'एक ख़्वाब हो तुम। हसीन ख़्वाब। रंगीन ख़्वाब। एक ऐसा ख़्वाब जिसने मेरी नींदें उड़ा रखी है। मुझे आज भी याद है वह दिन, जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था। तुम पीले सलवार-कमीज़ में सज्ज थी। कुछ सहमी सी, कुछ डरी सी थी तुम। तुम्हारा ऑफिस में पहला दिन जो था। में बॉस की कैबिन से बाहर आया कि तुम मेरे पास से गुज़र कर बॉस की कैबिन में चली गई। और तुम्हारा वह मखमली दुपट्टा मुझे छू गया था...' "राहुल! घड़ी में देखो ज़रा। बारह बज गये है। कल सुबह ऑफिस नहीं जाना क्या?",शिल्पा ने कहा तो मैंने डायरी बंद कर दी और सोने चला गया। आखिर दूसरे दिन ऑफिस भी तो जाना था। ऑफिस का ख्याल आते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान छा गई। ऑफिस में मेरी मोहिनी जो थी। मोहिनी सिर्फ एक लड़की नहीं पर मेरे ख़्वाबों की मलिका है। "अकेले अकेले क्यों मुस्कुरा रहे हो?",शिल्पा ने मुझसे पूछा। अब उसे क्या बताता? यह कोई बताने वाली बात तो नहीं थी। जिस दिन कभी उसे पता चल गया तो घर में महाभारत हो जाने वाला था। और हो भी क्यों नहीं!? शिल्पा मेरी बीवी जो है। "बस कुछ नहीं, डार्लिंग। ऐसे ही।"मैंने शिल्पा से कहा और मोहिनी के ख्यालों में खो गया। रातभर बस मोहिनी ही के ख़्वाब चले। मोहिनी मेरे दिलोदिमाग पर जो छाई है। ख़्वाबों में ही ना जाने कब सुबह हो गई।