#मैं.. अपने ही अधरों से प्रतिदिन सबकी पीर सुनाता हूँ शब्दों के ताने बाने में खुद को अक्सर उलझाकर रखता हूँ मौन नहीं मैं रह सकता जग के हालातों पर सबकुछ करके भेंट आपसे मैं भी तो कुछ पाता हूँ प्रेमल संबंधो को मन से आजीवन निर्वाह किया हैं मैंने उनके बिन जीना मरना तक आधा अधूरा पाता हूँ ऊँचे कद हो जाए अपने भी ज्यों मैं चरण गीत रचता जाऊं फकीर मन को जब जो भाए रस्ते रस्ते मैं गाता हूँ न मैं हूँ सौदागर कोई न हाट बाजार का ज्ञान मुझे सुख दुख सारे बांट बांट के हँसता और हँसाता हूँ मर जाऊँगा कफन कोई तो कोई अर्थी मेरी सजाएगा अग्रिम ये भुगतान हैं मेरा सबका कर्ज चुकाता हूँ मेरे पास अगर कुछ हैं तो मात्र स्नेहिल उद्गार हैं मेरे इसीलिए अपने मन के गीत को दोनों ही हाथ लुटाता हूँ.. मैं...दुनिया की भीड़ में अकेलेपण में जीनेवाला इक श्रापीत जोकर हुँ.. @शब्दभेदी किशोर ©शब्दवेडा किशोर #मैं_अनबूझ_पहेली