कौन कहता है कि शाम ढले तो मायूस हो जाओ पटाखे दिनभर भरकर रावण सांझ ही जलाते है कौन कहता है कि आईना सच की आग नही उगलता लेकिन भट्टी में जलाकर ही तो सोने को कुंदन बनाते है दिन गुज़र गया है अब शाम ढ़लने से क्या होगा दुनिया दौड रही है अब चलने से क्या होगा जितना गिरना था तू गिर गया अब संभलने से क्या होगा