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पराकाष्ठा दरिंदगी की, उस दिन उसने पार की, अपनी ही

पराकाष्ठा दरिंदगी की, उस दिन उसने पार की,
अपनी ही बिटिया की जब, अपने हाथों जान ली।

फूल सी कली जो, खिली भी नहीं थी,
बीज जो अंकुरित, पनपा भी नहीं था।

कुचल दिया उसको, मसल दिया उसको,
बेवजह और बिन मतलब के, ठुकरा दिया उसको।

पर शायद अच्छा ही हुआ, वो चली गई,
रोज़ तिल तिल मरने से अच्छा एक बार में मर गई।। 
 स्वागत है आप सब का प्रतियोगिता में

👉 प्रतियोगिता की समयसीमा आज रात बारह बजे तक
👉 पंक्तियों की सीमा -8
👉 कृपया मात्राओं और त्रुटियों का ध्यान रखें
👉 कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग न करें
👉 कॉलब करने के बाद अपना कॉलब ऑप्शन बंद कर दे
पराकाष्ठा दरिंदगी की, उस दिन उसने पार की,
अपनी ही बिटिया की जब, अपने हाथों जान ली।

फूल सी कली जो, खिली भी नहीं थी,
बीज जो अंकुरित, पनपा भी नहीं था।

कुचल दिया उसको, मसल दिया उसको,
बेवजह और बिन मतलब के, ठुकरा दिया उसको।

पर शायद अच्छा ही हुआ, वो चली गई,
रोज़ तिल तिल मरने से अच्छा एक बार में मर गई।। 
 स्वागत है आप सब का प्रतियोगिता में

👉 प्रतियोगिता की समयसीमा आज रात बारह बजे तक
👉 पंक्तियों की सीमा -8
👉 कृपया मात्राओं और त्रुटियों का ध्यान रखें
👉 कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग न करें
👉 कॉलब करने के बाद अपना कॉलब ऑप्शन बंद कर दे
mahimajain6772

Mahima Jain

New Creator