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"Beggar- एक गरीब आदमी " एक बहुत ही गरीब आदमी था,

"Beggar- एक गरीब आदमी "

एक बहुत ही गरीब आदमी था, ढकने को ढंग का कपड़ा ना था।
सर्दी की वो बडी कातिल रात थी, कुछ ज्यादा ही ठंड पड़ रही थी।

फटी पुरानी शॉल ओढ़ रखी थी, फिर भी सर्दी से कहाँ बचा पा रही थी।
शीत लहर में रुह भी काँप रहीं थीं, बेचारे की ठंड में जान जा रही थी।

जब लाकर दी किसी ने  चाय, तभी उसे सूझा एक सरल उपाय।
लकड़ियां इकट्ठी करके जमायी, माचिस से वहाँ उसने आग लगाई।

उसकी किस्मत पलटी खा गई ,कुछ देर में जोरदार बारिश आ गई।
पहले ही वो ठंड से मर रहा था, बारिश में भीग कर कराह रहा था।

लेकिन जैसे कोई फरिश्ता आया, उसे वह अपने साथ घर ले आया।
कपड़े बदलवाकर चाय पिलाई, खाना खिला कर उसकी भूख मिटाई।

उसकी खुशी का ठिकाना ही ना था, किस्मत पर उसे गुमान आ रहा था।
बारिश बंद हुई फिर वह लौट गया, उन्हीं किस्मत के थपेड़ों में खो गया!
स्व रचित मौलिक रचना ✍सुमित मानधना 'गौरव', सूरत 😎

©SumitGaurav2005
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