Nojoto: Largest Storytelling Platform

आवाज़ें दबी रह गई ख़्वाहिशों की, जो कहनी उनसे ज़रूरी

आवाज़ें दबी रह गई ख़्वाहिशों की,
जो कहनी उनसे ज़रूरी थी..!

महफ़िल में भी चुप रह गए वो,
न जाने कैसी मज़बूरी थी..!

कुछ रह गए होंगे ख़्वाब अधूरे,
कैसी ये दरमियाँ दूरी थी..!

जीवन की कश्ती डूबती नज़र आई,
गंवाई जान ज़माने की जी हुज़ूरी थी..!

ख़त्म होनी न थी कहानी इश्क़ की,
किस वजह से ये अधूरी थी..!

एक क़दम चल न सके साथ वो,
काँटों की राह क्या सच में फितूरी थी..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Chhuan #khwahishen