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शमशीर के भी घाव को भरता रहा है वक्त ये, शब्दों के

शमशीर के भी घाव को भरता रहा है वक्त ये,
शब्दों के हों गर ज़ख्म तो मरहम से वो भरते नही।
@मुकेश पाण्डेय जिगर

©kavi sammelan 
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