नए शहर में बस एक ही उम्मीद थी, कोई चाहेगा मुझको खुशबुओं की तरह। जहाँ पार पाना, पार जाना दुर्गम, कि कोई थाम लेगा हाथ सेतु की तरह। अंधेरों में जो न होने देगा गुमराह, कोई मिल जाएगा मुझे जुगनु की तरह। भर देगा ज़िन्दगी में रंग ढेर सारे, छा जाएगा ज़िन्दगी में इन्द्रधनुष की तरह। समाहित करेगा मुझे स्वयं में ऐसे, प्रवाहित रहेगा धमनियों में रक्त की तरह। नए शहर से बस ये उम्मीद ’मदीहा’ कि समझेगा दर्द मेरा अपने दर्द की तरह। अबोध_मन//“फरीदा” ©अवरुद्ध मन नए शहर में बस एक ही उम्मीद थी, कोई चाहेगा मुझको खुशबुओं की तरह। जहाँ पार पाना, पार जाना दुर्गम, कि कोई थाम लेगा हाथ सेतु की तरह। अंधेरों में जो न होने देगा गुमराह, कोई मिल जाएगा मुझे जुगनु की तरह।