नारीवाद, क्या आपने कभी सोंचा है " नारीवाद" नामक इस शब्द का जन्म कहाँ से हुआ? दरसल बहुत कम ही ऐसे लोग हैं जो नारीवाद शब्द के अंतः स्थल को समझ पाये हैं। कोई भी स्त्री जब अपने हितों के बारे में बात करे उसे नारीवादी कहा जाता है। स्त्री जब अपने अधिकारों कि माँग करे , जब अपने उपर अत्याचार सहने बंद कर दे, जब अपने विचार बेपरवाह होकर दूनिया को बताने लगे , वो नारीवादी हो जाती है। आखिर क्यों पुरुष वर्ग के लिए पुरूष वादी शब्द का प्रयोग बार - बार नहीं किया जाता? क्यूँ पुरूष को अपने हक के लिए किसी समाज समुदाय और दूनिया से नहीं लड़ना पड़ता? शायद इसलिए क्यूँ कि इस संसार में एक ही जाति है, पुरूष जाति। और इसलिए पुरूष नें अपनी सहुलियत के अनुसार सारे नियम बनाये। मनुष्यता के सभी अधिकारों पर पहले पुरूष का अधिकार है। फिर अगर वो चाहे तो स्त्री को उसमें साझा बना ले। या फिर कुछ दान करने जैसा सुख अनुभव करने हेतु स्त्री को कुछ अधिकार दान में दे दे। ये ठीक वैसा ही है जैसा कि जातिवाद। ऊँची जाति के एक तबके ने सब अपने अधिकार में कर लिया और फिर दान स्वरूप जीवन काटने के कुछ संसाधन तथाकथित नीची जाति को दे दिया । अब जब तथाकथित नीची जाति के व्यक्ति ने इसका विरोध किया तो पहले उसे समझाया - बुझाया गया। फिर अत्याचार किया गया। जो फिर भी ना माने तो उन्हे आंदोलन कर्ता, जन विरोधी ..... अादी नामों से संबोधित कर समाज से बेदखल कर दिया गया। और फिर जातिवाद शब्द कि उपज हुई। और ये हमारे देश कि एक बड़ी समस्या है। पर इसका कोई हल नहीं, क्यूंकि इसी पर तो राजनीति है। आरक्षण है, और भ्रष्टाचार है। खैर अब आते हैं मुद्दे पर, अब तक आप समझ ही गये होंगे कि नारीवाद में नीची जाति कौन है। अब अगर कोई अपने हक पर लड़ने आये तो वो तब तक लड़ता है जब तक उसकी पूर्ण समस्या का हल ना हो जाये। अब आप उसे नारीवाद कहें या जातिवाद। साभार - प्रियंका मजुमदार। ©Priyanka Mazumdar #नारीवाद