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उपवन नहीं मरा करते जितने भी अँधेरे मिल जाएं जुगनू

उपवन नहीं मरा करते

जितने भी अँधेरे मिल जाएं जुगनू नहीं डरा करते 
इक चिड़िया के मर जाने से उपवन नहीं मरा करते। 

एसा भी क्या हठ है तेरा कब तक शोक मनाएगा 
आँखों के इस दरिया से सागर नहीं भरा करते। 

क्या देख रहा अम्बर को, क्यूँ उम्मीद लगाए बैठा है 
छिटपुट प्रेम के बादल सहरा नहीं हरा करते। 

किसी का हो वो दरिया चाहे किसी का उसका पानी 
अपना हक़ आज़माने को किनारे नहीं लड़ा करते।

ऐसी ही ये दुनिया है ऐसा ही ये शहर है सम 
इसके झूठे वादों पर जीवन नहीं अदा करते।

©CHOUDHARY HARDIN KUKNA
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