ज़िन्दगी का खेल ए भगवान तू ये कैसा खेल रचाता है किसी को अमीर तो किसी को गरीब क्यूँ बनाता है ज़िन्दगी के खेल मे अमीर को राजा और गरीब को प्यादा क्यूँ बनाता है अमीर को तू दे देता है 56 भोग फिर क्यूँ गरीब को तू भूखा सुलाता है ए भगवान तू ये खेल क्यूँ रचाता है।।। अगर अमीरों को तू दिलाता है इज्जत फिर गरीबों को क्यूँ बदनाम कराता है अमीरों को सिखाता है कलम चलाना तो गरीबों से क्यूँ बोझा उठवाता है उन्हें देता है मखमली बिस्तर फिर क्यूँ हमें सड़को पर सुलाता है अमीरों को रखता है तू हर दम सुखी फिर क्यूँ हमें तू हर चीज़ के लिए रुलाता है अब बंद कर दे ये खेल अब ये और न खेला जाता है ए भगवान तू ये ज़िन्दगी का खेल क्यूँ रचाता है। (रचियता निखिल सिंह) ©Nikhil Singh #poor #Life