White मन वैराग्य बनना बुद्ध सा चाहता है, तो मन ही चंचल कहां कभी स्थिर रहता है। मन मोह से दूर परमात्मा की शरण चाहता है, तो मन ही बाधा माया से बंध जाता है।। ज्यों ज्यों दे मन को दोष पार्थ, सारथी को क्यों भूल जाता है। जिस दिन होय कृपा उनकी, मन दास बन परमात्मा मे लीन हो जाता है।। ©Akshita yadav #मन #ईश्वर #भक्ति #परमात्मा