#OpenPoetry कौन कहेगा मुझे कहाँ है चलना, सफ़र बड़ी है, मुझे नहीं थेहरना, मौसम बदलेगा, मुझे नहीं डरना, फिज़ाओं से मुझे, बातें बहुत करना। ** आते जाते लोगों के, आँखों में है तकना, पलकें झुक रही, शर्म क्यूँ करना, एक ही है जिंदगी, पूरी तरह जीना, खुली किताब हूँ मैं, सभी को पढ़ना। ** बादल फटेगा तो, पेहली बूँद मुझपे ही गिरना, पंछीया उड़ रही, घर तुम अब निकलना, सफ़र कठिन होनी है, पर मुझे नहीं रुकना, गरजते बादल से मुझे है भिड़ना । ** जाने वाले चले गए, अब खुद के लिए जीना, साँसे जितनी चलेगी, उससे ज्यादा है जीना, पूरी वफ़ा के साथ, ज़िन्दगी है जीना, मेरे संग चलो तुमभी, अब क्या है डरना। कौन कहेगा मुझे कहाँ है चलना..... #OpenPoetry Kaun kahega mujhe kahan hai chalna - #munchkinpoet