शालीनता संयमित्ता से चल क़दमों को अपने लक्ष्य तक के जाऊं, रोम रोम प्रश्नचित हो जाये मुस्कुराना बाकि है कुछ ऐसा कर जाऊं, मेरी अक्षरोंयोक्ति से हो सक्षम मैं ऐसा स्वर्णिम साहित्य रच जाऊं, हो अगर मेरे अपनो का साया मेरे सर पर मैं आसमां की थाह नाप जाऊं। समय सीमा : 06.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,