मैं तुझे यूँ ही बेसब्र चाहता रहूँ , और कभी भी तुझसे कुछ न कहूँ , तो बोल न इसमें हर्ज़ क्या है । बस तेरी यादों को रखूँ पास मैं , और तुझसे सदियों तक दूर रहूँ , तो बोल न इसमें हर्ज़ क्या है । माँगू दुवाएँ तेरी खुशियों की मैं , और खुद बस अपने अश्कों में जियूँ , तो बोल न इसमें हर्ज़ क्या है । जो इबादत खुदा की करते रहे , खुदा उनको भी न मिला , मैं तुझको ही ख़ुदा समझ लूँ , तो बोल न इसमें हर्ज़ क्या है ।। ।।विवेक।। #हर्ज़ क्या है