#OpenPoetry वो इक पैग़ाम तुम्हारा जाने कितना मुझे हंसाता रहा मुझ उदास को दिलासा दिलाता रहा चाहत तुम्हारी ख़ैर की मिरी, मुझसे दुआ पढ़वाता रहा बैचेनियों में मिरी, ख़ुदा के क़रीब लाता रहा तुम्हारे किसी और के हो जाने का ख़बर, मुझे रात भर जलाता रहा उम्मी़द तेरे इश्क़ की, मुझे सब्र बंधाता रहा टूट जाते हैं अक्सर जिस मोड़ पर, आशिक तेरा इंतज़ार मुझे बेहतर बनाता रहा यूँ तो मर जाते हम उसी वक़्त, नाम तेरा मेरा दिल धड़काता रहा अंधेरों में दर्द के, तेरा सुरूर, दवा के काम आता रहा तुमने तो दुआ नहीं पढ़ी कभी मेरे नाम की मुहब्ब़त मिरा, हमसे सज़दा करवाता रहा रूह मेरी हो जाती फ़ना, तेरी बेवफ़ाई पर मिरा यक़ीन तुझपें, मेरी जान बचाता रहा तेरा हूँ मैं, बस तेरा ही, यही सोचकर मैं किसी और का होने से कतराता रहा....।। यक़ीन तुझपे मेरा, मुझे जीना सिखाता रहा