रात खिड़की से झाँकता चाँद और उसकी अनगिनत बाहें छेड़ती हैं तुमको जिसे तुम रौशनी कहती हो, हर रात चूमती हैं तुम्हारे बदन को, होंठो को, आँखों को खेलती हैं जुल्फों में तुम्हारे उसकी बाहें जी भर, हर रात आता है वो उमस की गर्मियों में जलता हूँ देखकर तुम्हे उसकी बाहों में कम्बख़्त जाता भी तब है जब मैं जलकर आग का गोला(सूर्य) हो जाता हूँ। ©Nikhil Vairaagi #KhidkiSeChand Divyanshu kumar singh