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जहां से शुरू सबकी सोच होती है, उस सोच से मुलाकातें

जहां से शुरू सबकी सोच होती है,
उस सोच से मुलाकातें रोज़ होती है,
रोज़ जो देखूं आइने में चेहरा मेरा,
आइने में भी अपनी ही खोज होती है,
खोज का सिलसिला भी अजीब सा है,
लगती क्यों कामयाबी भी नसीब सा है,
जाने किस दौर से गुजर रहा हूं,
वक़्त की मार भी तहजीब सा है,
तहजीब भी मिली यूं हालातों में,
जब हालात पढ़ रहे थे किताबो में,
किताबो का सफ़र भी था मुश्किल बड़ा,
मुश्किल का समाधान था जवाबों में,
जवाब जो मिले तो मैंने कलम उठाया,
अल्फाजों में समेट जो सबको बताया,
थक सा गया था ज़िन्दगी में कहीं ,
तभी तो एक अलग पहचान बनाया,
पहचान जो बनी कागज़ के साथ,
ना दिया धोखा कभी बस दिया मेरा साथ,
खुशी या निराशा में जब भी मैं डूबा,
स्याही के सहारे उतारे सारे जज़बात।। रोज़ की आदत।
जहां से शुरू सबकी सोच होती है,
उस सोच से मुलाकातें रोज़ होती है,
रोज़ जो देखूं आइने में चेहरा मेरा,
आइने में भी अपनी ही खोज होती है,
खोज का सिलसिला भी अजीब सा है,
लगती क्यों कामयाबी भी नसीब सा है,
जाने किस दौर से गुजर रहा हूं,
वक़्त की मार भी तहजीब सा है,
तहजीब भी मिली यूं हालातों में,
जब हालात पढ़ रहे थे किताबो में,
किताबो का सफ़र भी था मुश्किल बड़ा,
मुश्किल का समाधान था जवाबों में,
जवाब जो मिले तो मैंने कलम उठाया,
अल्फाजों में समेट जो सबको बताया,
थक सा गया था ज़िन्दगी में कहीं ,
तभी तो एक अलग पहचान बनाया,
पहचान जो बनी कागज़ के साथ,
ना दिया धोखा कभी बस दिया मेरा साथ,
खुशी या निराशा में जब भी मैं डूबा,
स्याही के सहारे उतारे सारे जज़बात।। रोज़ की आदत।