ख़ुदा का घर मिलने वाले को ख़ुदा, कहीं भी मिल जाता है, मंदिर या मस्जिद क्या, मिट्टी की खुशबू में, सूरज की गरमी में, किसी चेक बन्दे के दिल में। बटवारा उसने नही हमने किया है, देने वाले तो कई नाम देते हैं, पर उसने सबको इन्सानियत का नाम दिया है। ख़ुदा का घर तो मनमन्दिर में बसा है, वह तो सृष्टि के कण-कण में बसा है, कभी झाँक लेना माता- पिता की आँखों में, या कभी ढूँढ लेना करीबी दोस्तों की बातों में, मिल जाता है ख़ुदा हर उस अनजान सहायक में, कभी मिल जाता है यूँ ही प्रार्थना और दुआओं में, एक सुकून तुरयावस्था में, हलकापन महसूस हो जाता है, जब- जब ख़ुदा मुझमें ज़िन्दा रहने की उम्मीद जगाता है। #kksc39 #ख़ुदाकाघर #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़