वो दिवारो दर का पत्ता पुछ रही है हवाये भी अब रहे गुजर का पत्ता पुछ रही है ना जाने किस गली मे ढूंड ती फिरती है मोत भी अब मेरे घर का पत्ता पुछ रही है हनीफ शाह मेरी कलम से