बड़ी बेखबर सी होती जा रही है जिंदगी, ज़मीर की आवाज, कब किसे सुनाई देती है? फरेब और सहुलियतों का असर गहरा, इसने मन की हर सदा दबाई है। बेलगाम सी हुई हर आरजू, सराफतों का आलम नहीं, सबने अब हर दौर में, अपनी कीमत लगाई है। ज़मीर की आवाज, किसी ने नहीं अपनाई है? #solotraveller #nizotohindi