झूठ, अहम और मैं और ,*ईश्वर* Dedicated to Sir AVR Krishnan ji मुझे पढ़नी थी psychology पढ़नी पड़ी Pharma एक तो वैसे ही पढ़ाई में mediocre उपर से मनपसंद का subject नहीं। चुपके चुपके BA psychology की क्लास के लास्ट बेंच पर बैठता with permission from lecturer college में famous था ही तो कोई दिक्कत नहीं हुई। खैर करना था pharmacy का बिजनेस तो... मन में घोर विरोध था parents के लिए कि मुझे साइकोलॉजी नहीं पढ़ने दी 1980 में दिल्ली आ गए और दो साल तक एक रुला देने वाला संघर्ष शुरू हुआ एक छोटी सी जमापूंजी से व्यवसाय करने का 1982 के अंत तक मन ने हार मान ली थी कि ये मेरे बस का नहीं है....फिर कुछ ऐसा हुआ की 1983 आते आते काम चल निकला... भूल गए सब वो दिन जब 10 रुपए बचा लेने के चक्कर में डिनर त्याग देते उन दिनों दिल्ली अकेला रहता था... पेट भरने लगे तो और इच्छाएं जागने लगती हैं...ठीक वही हुआ अहम महाशय ने अपना सर उठाया और psychology पड़ने का सोया भूत ..प्रेत की तरह सामने आया और मैंने Annamalai University में MA psychology में correspondence में addmission लिया