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*मेरे अन्सुल्झे सवाल जो लिखते लिखते खुद से पुछ बै

*मेरे अन्सुल्झे सवाल जो लिखते लिखते  खुद से पुछ बैठता हु*

मुझे लगता है मेरी कविताएं 
मेरे एकांत का एकालाप है
आजकल मेरे शब्द 
मुझसे ही उलझ जाते हैं
मेरे शब्दों के माया जाल से 
मैं भ्रमित सा हो जाता हूं
जो कहना चाहूं कह ना पाऊं 
जो लिखना चाहूं लिख ना पाऊं
क्या सच में कविता की कोई सीमा है
किसी ने खींचे दी है कोई लक्ष्मण रेखा 
कविताओं के लिए
या समाज ने तय करदी हो कोई सीमा
क्या हमारी कलम सीमा से बंधी है
जिस से बाहर निकलने से तोड़ दी जाएगी
हम बुराई को पूरा हुबहु क्यों नहीं कह पाते
और सच को इतना श्रृंगार से ढक देते हैं 
कि उसके मायने ही बदल जाते हैं
क्यों नग्न सत्य को कपड़े से ढकना जरूरी हैं
क्यों कविता कागज पर उतरते उतरते 
सच को कहीं खो देती है
अपने नाकाफ़ी होने के बोझ से 
कविता कभी मुक्त नहीं हो पाती है 
क्या कविता कोशिश भर कर पाती है
जिसमें कर्म और आकांक्षा सब मिले-जुले हैं

©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) *मेरे अन्सुल्झे सवाल जो लिखते लिखते  खुद से पुछ बैठता हु*

मुझे लगता है मेरी कविताएं 
मेरे एकांत का एकालाप है
आजकल मेरे शब्द 
मुझसे ही उलझ जाते हैं
मेरे शब्दों के माया जाल से 
मैं भ्रमित सा हो जाता हूं
*मेरे अन्सुल्झे सवाल जो लिखते लिखते  खुद से पुछ बैठता हु*

मुझे लगता है मेरी कविताएं 
मेरे एकांत का एकालाप है
आजकल मेरे शब्द 
मुझसे ही उलझ जाते हैं
मेरे शब्दों के माया जाल से 
मैं भ्रमित सा हो जाता हूं
जो कहना चाहूं कह ना पाऊं 
जो लिखना चाहूं लिख ना पाऊं
क्या सच में कविता की कोई सीमा है
किसी ने खींचे दी है कोई लक्ष्मण रेखा 
कविताओं के लिए
या समाज ने तय करदी हो कोई सीमा
क्या हमारी कलम सीमा से बंधी है
जिस से बाहर निकलने से तोड़ दी जाएगी
हम बुराई को पूरा हुबहु क्यों नहीं कह पाते
और सच को इतना श्रृंगार से ढक देते हैं 
कि उसके मायने ही बदल जाते हैं
क्यों नग्न सत्य को कपड़े से ढकना जरूरी हैं
क्यों कविता कागज पर उतरते उतरते 
सच को कहीं खो देती है
अपने नाकाफ़ी होने के बोझ से 
कविता कभी मुक्त नहीं हो पाती है 
क्या कविता कोशिश भर कर पाती है
जिसमें कर्म और आकांक्षा सब मिले-जुले हैं

©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) *मेरे अन्सुल्झे सवाल जो लिखते लिखते  खुद से पुछ बैठता हु*

मुझे लगता है मेरी कविताएं 
मेरे एकांत का एकालाप है
आजकल मेरे शब्द 
मुझसे ही उलझ जाते हैं
मेरे शब्दों के माया जाल से 
मैं भ्रमित सा हो जाता हूं