घर से निकल कर घर को लौट आता हूँ, घर से निकल कर, घर को लौट आता हूँ ये ही वो जन्नत है जहाँ मैं सारे सुख पाता हूँ। माँ के हाथ से बनी रोटी, बाबा के कंधों के झूले, इनकों पाकर मैं खुदको सबसे अमीर मानता हूँ। ज़िन्दगी के थपेड़ों से जब थक जाता हूँ, माँ की गोद मे असीम सुख मैं पाता हूँ। यहाँ मुझे ना हारने का डर है, ना जीतने की चाह, माँ के चेहरे की मुस्कान और बाबा के सर की पगड़ी मैं बन जाता हूँ। घर से निकल कर, घर को लौट आता हूँ। इस स्वार्थ की दुनिया मे, मतलब के रिश्ते बोहत हैं माँ-बाप का निस्वार्थ प्यार और त्याग देख, मैं हैरान हो जाता हूँ। दुनिया की झूठी शान-ओ-शौकत जहाँ लुभा नहीं पायी मुझे, वहीं अपने माता-पिता की सादगी देख, मैं मन्त्र मुग्ध हो जाता हूँ। घर से निकल कर, घर को लौट आता हूँ। #nojoto#lineoftheday#selfexpression#poetry_voiceofsoul