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क्षोभ नहीं जो कल बीता, शायद वो काल सकल बीता। हर ध्

क्षोभ नहीं जो कल बीता,
शायद वो काल सकल बीता।
हर ध्वंस हुआ ही है जग में
विनाश के बाद, नव सृजन के लिए।

ये प्रेम यथार्थ तो है मेरा
पर वियोग से अब ये तन जलता।
इक राह का चयन किया फिर से
विरह के बाद, नए मिलन के लिए।

(पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़े...) क्षोभ नहीं जो कल बीता,
शायद वो काल सकल बीता।
हर ध्वंस हुआ ही है जग में
विनाश के बाद, नव सृजन के लिए।

ये प्रेम यथार्थ तो है मेरा
पर वियोग से अब ये तन जलता।
इक राह का चयन किया फिर से
क्षोभ नहीं जो कल बीता,
शायद वो काल सकल बीता।
हर ध्वंस हुआ ही है जग में
विनाश के बाद, नव सृजन के लिए।

ये प्रेम यथार्थ तो है मेरा
पर वियोग से अब ये तन जलता।
इक राह का चयन किया फिर से
विरह के बाद, नए मिलन के लिए।

(पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़े...) क्षोभ नहीं जो कल बीता,
शायद वो काल सकल बीता।
हर ध्वंस हुआ ही है जग में
विनाश के बाद, नव सृजन के लिए।

ये प्रेम यथार्थ तो है मेरा
पर वियोग से अब ये तन जलता।
इक राह का चयन किया फिर से
amargupta4255

amar gupta

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