सीख ना हिन्दू, ना मुस्लिम, ना सिक्ख, ना ईसाई। जब हम आजाद हुए, तब सब थे हिन्दुस्तानी। मजहबी टुकड़ा बट गया अपनी गुलामी की पहचान से। हमने स्वेच्छा से चुना था, धर्मनिपेक्षता के अभिमान को। फिर किसने बना डाला धर्मनिपेक्षता को मजहबी जाल में। क्या तुम फिर चाहते हो, अब भी भारत माता पर घात और। फिर एकता दिखलानी है, गेरो की बात को ना माननी है। बहुत समझाया था 47 में हमें एक बार फिर समझना है। कर दिए हैं हजारों घात भारत माता पर,अब रक्षक बनकर दिखलाना है। अब ना हिन्दू, ना मुस्लिम, ना सिक्ख,ना ईसाई। अब हिन्दुस्तानी बनना है। shAhtAj cuteipiE