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लाचारी (दोहे) नेता जेबें भर रहे, देखो अब दिन रैन।

लाचारी (दोहे)

नेता जेबें भर रहे, देखो अब दिन रैन।
लाचारी से देखती, जनता है बेचैन।।

लाचारी सबसे बड़ी, करती है मजबूर।
वश में तब कुछ हो नहीं, ये कैसा दस्तूर।।

आती है जब त्रासदी, होते सब लाचार।
कहती है कुदरत तभी, ये ही है आधार।।

विद्यालय अब श्रोत है, धन का ये आधार।
चिंता है माँ बाप की, धन से हैं लाचार।।

खतरनाक ये दौर है, नहीं बनो अनजान।
लाचारी को छोड़ कर, वीर बनो इंसान।।

पट्टी बाँधी आँख पर, अंधा है कानून।
लाचारी अब न्याय की, झूठ माँगता खून।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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लाचारी (दोहे)

नेता जेबें भर रहे, देखो अब दिन रैन।
लाचारी से देखती, जनता है बेचैन।।

लाचारी सबसे बड़ी, करती है मजबूर।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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