#OpenPoetry लहलहाती फसलों से ,रोज किसानों के मसलों तक गिड़गिड़ाती बिजली से, रोज जवानों के हौसलों तक मेरा देश मुझे दिखता है सड़कों की चलाचली से , ट्रेन की छुकछुक तक महलों की रोशनी से , झोपड़ी की जगमग तक मेरा देश मुझे दिखता है तबले की राग से, बूढ़ी आवाज़ तक कोयले की आग से, बदलते समाज तक मेरा देश मुझे दिखता है खूबसूरत सी वादि से , बढ़ती आबादी तक खेत में रखी खाट से, गंगा जी के घाट तक मेरा देश मुझे दिखता है सब्जी के ठेलो से, कुंभ के मेलों तक बड़े बड़े कलाकारों से, बढ़ते फनकारों तक मेरा देश मुझे दिखता है हर सड़क की झोपड़ी से, चाय की हड़बड़ी तक हर गुरु की बड़बड़ी से, शिष्य की गड़बड़ी तक मेरा देश मुझे दिखता है मीठे मीठे सरबतो से, ठंडे ठंडे गागर तक ऊंचे ऊंचे पर्वतों से, हिन्द महासागर तक मेरा देश मुझे दिखता है जिज्ञासु सावालियो से, नए नए कावालियो तक गिड़गिड़ाती बिजलियों से, कलाकारों को मिलती तालियों तक मेरा देश मुझे दिखता है तीज त्योहार से , खिले हुए चांद तक। नई नई किलकार से, अंत मुक्तिधाम तक। मेरा देश मुझे दिखता है #OpenPoetry #jabalpur #chhatarpur