तुलसी सी महकती है चिडीया सी चहकती है पर मुझ से पुछा करती है पापा घर कब आऔगे मेरे छत की वो चॉदनी है मेरे ऑगन की वो रौशनी है पर मुझ से पुछा करती है पापा घर कब ऑओगे होली बे रंग सी लगती है दीपावली भी फीकी फीकी है पापा बस आप की यादें मीठी मीठी है बता दो ना पापा घर कब ऑओगे हे मरी नंही चिडीया हे मेरी प्यारी गुडीया एक तु ही नही जिस की मेरे कंधों में रकक्षा है मेरे हाथों में तो पूरे देश की बेटी की सुरक्षा है तेरे पापा तुझसे दूर नही तुझसे मिल ना पाऊ एसा भी मजबूर नही तुझ से पहले मुझपे देश की जिमेदारी है क्यों की तेरे पापा की सरहद पर पहरेदारी है सुन्दर सपने ढेरों खिलौने लाउगा तेरे हर नाज हर नखरे ऑखो में उठाउंगा बेटी एक दीन मैं वापस आउंगा बेटी एक दीन मैं वापस आउंगा कवि राज गुप्ता भाटापारा छ ग