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बुद्ध एक छिछली नदी हैं जो तुम्हें गहरे में उतारते

बुद्ध एक छिछली नदी हैं
जो तुम्हें गहरे में उतारते हैं
पर तुम्हें डूबने नहीं देते... बुद्ध से मैं सबसे पहले मिला कक्षा 7 में जब मैंने पढ़ी कहानी महात्मा बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल...उनका वो कथन " मैं तो ठहर गया, तू कब ठहरेगा" मेरा प्रिय डायलाग हो गया जैसे आजकल सलमान का "स्वागत नहीं करोगे हमारा" या अक्षय कुमार का "जो मज़ा तेरी अकड़ तोड़ने में है, वो तेरी हड्डियां तोड़ने में नहीं"...उस समय तो बुद्ध के इस कथन का मैं इतना ही मतलब समझा था कि वो एक साहसी नायक की भाँति किसी से डरते नहीं हैं इसलिए उन्होंने अंगुलिमाल से ऐसा कहा...बाद में इसका असली मतलब समझ आया...

धीरे धीरे उन्हें इतिहास की किता
बुद्ध एक छिछली नदी हैं
जो तुम्हें गहरे में उतारते हैं
पर तुम्हें डूबने नहीं देते... बुद्ध से मैं सबसे पहले मिला कक्षा 7 में जब मैंने पढ़ी कहानी महात्मा बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल...उनका वो कथन " मैं तो ठहर गया, तू कब ठहरेगा" मेरा प्रिय डायलाग हो गया जैसे आजकल सलमान का "स्वागत नहीं करोगे हमारा" या अक्षय कुमार का "जो मज़ा तेरी अकड़ तोड़ने में है, वो तेरी हड्डियां तोड़ने में नहीं"...उस समय तो बुद्ध के इस कथन का मैं इतना ही मतलब समझा था कि वो एक साहसी नायक की भाँति किसी से डरते नहीं हैं इसलिए उन्होंने अंगुलिमाल से ऐसा कहा...बाद में इसका असली मतलब समझ आया...

धीरे धीरे उन्हें इतिहास की किता