तुझे छुने को सावन तरसे, ऐ ख़ुदा मदिरा बरसे. ये लब भी गुलाबी हुए, सारे शायर शराबी हुए, अनपढ़ थे जो लड़के, तुझे पी के किताबी हुए. तू चढ़ती है तो चढ़ सर से, ऐ ख़ुदा मदिरा बरसे. अब हूज़ूर बस नाम के, सारे मोहरे गुलाम के, जो तुझे जाने वो सिकंदर, जो ना समझे, नाकाम के. मैं बहुत दूर आया घर से, ऐ ख़ुदा मदिरा बरसे. मदिरा बरसे