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स्वप्न अनगिनत देखें जिसने, रिश्तों पर सर्वस्व लुटा

स्वप्न अनगिनत देखें जिसने,
रिश्तों पर सर्वस्व लुटाया है।
बोझ बताकर मुझको फिर क्यों?
अंततः नजरों से गिराया है।
नयनों के उस पार अड़ी जो,
बंधी सुनामी बह जाएगी।
एक दिन... चिड़िया उड़ जाएगी।

©Ritika Vijay Shrivastava
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